प्राचीन एवं भक्तिकालीन काव्य
प्राचीन एवं भक्तिकालीन काव्य
Course Outcomes
यह पाठ्यक्रम शिक्षार्थियों को हिन्दी साहित्य के आदिकाल और भक्तिकाल के काव्य स्वरूप, उसकी प्रवृत्तियों तथा प्रमुख कवियों की काव्य रचनाओं के सैद्धांतिक एवं व्यावहारिक अध्ययन की सुविधा प्रदान करता है। इस कोर्स के अध्ययन के पश्चात् शिक्षार्थी निम्नलिखित बिंदुओं पर सुस्पष्ट ज्ञान प्राप्त कर सकेंगे—
- हिन्दी साहित्य के आरंभिक काल के काव्य का ऐतिहासिक और सैद्धांतिक ज्ञान प्राप्त करेंगे।
- चंदबरदाई, कबीर, जायसी, सूरदास और तुलसीदास के काव्य और उनकी काव्य विधाओं का अध्ययन करेंगे।
- आदिकालीन वीरकाव्य, संत काव्य, निर्गुण और सगुण काव्यधारा का विस्तृत अध्ययन करेंगे।
- सूफी काव्यधारा, रामभक्ति एवं कृष्णभक्ति काव्य की विशेषताओं का विश्लेषण करेंगे।
Course Structure
- क्रेडिट: 6
- अधिकतम अंक: 25 (आंतरिक) + 75 (बाह्य) = 100
- कुल कक्षाएँ: 6 घंटे प्रति सप्ताह (6-0-0)
Unit I: प्राचीन हिन्दी काव्य परिचय एवं इतिहास
प्राचीन हिन्दी काव्य का विकास एवं विशेषताएँ
हिन्दी साहित्य के प्राचीन काव्य का उद्भव 10वीं से 14वीं शताब्दी के बीच हुआ। यह काल मुख्यतः वीरगाथा काल के नाम से जाना जाता है। इस समय रचित काव्य में वीर रस प्रधान होता था, जिसमें राजाओं, योद्धाओं और उनके युद्धों का वर्णन किया जाता था।
वीरगाथा काल (आदिकाल) की प्रमुख विशेषताएँ
- वीर रस की प्रधानता: इस काल के काव्य में शौर्य, पराक्रम, वीरता और देशभक्ति की भावना प्रबल रूप से देखी जाती है।
- राजाओं और योद्धाओं की स्तुति: राजाओं के युद्धों, पराक्रम, वीरता और आदर्शों का विस्तृत वर्णन मिलता है।
- काव्य की भाषा: मुख्यतः अपभ्रंश, देशज, अवधी और ब्रज भाषा का प्रयोग हुआ।
- प्रमुख कवि: चंदबरदाई (पृथ्वीराज रासो), जगनिक (अल्हा खंड), विद्यापति आदि।
वीरगाथा काल के महत्वपूर्ण ग्रंथ
- पृथ्वीराज रासो (चंदबरदाई) – पृथ्वीराज चौहान की वीरता और युद्धों का वर्णन।
- आल्हा खंड (जगनिक) – आल्हा और ऊदल की वीरता की गाथा।
- विद्यापति काव्य – प्रेम और भक्ति पर आधारित।
Unit II: भक्तिकालीन हिन्दी काव्य एवं भक्ति आंदोलन
भक्ति आंदोलन का परिचय
भक्ति आंदोलन 14वीं से 17वीं शताब्दी के बीच फला-फूला। इस काल में धार्मिक सहिष्णुता, सामाजिक सुधार और लोकभाषा में काव्य रचनाएँ की गईं। भक्ति आंदोलन को दो धाराओं में विभाजित किया जाता है—
- निर्गुण भक्ति धारा – इसमें ईश्वर को निर्गुण और निराकार माना गया।
- सगुण भक्ति धारा – इसमें ईश्वर को साकार रूप में स्वीकार किया गया।
निर्गुण काव्यधारा
इस धारा के प्रमुख कवि कबीर, गुरु नानक, दादू दयाल, रैदास आदि थे।
- ज्ञानमार्गी शाखा – ईश्वर के निराकार रूप को ज्ञान के माध्यम से प्राप्त करने की प्रवृत्ति।
- प्रेममार्गी शाखा – ईश्वर को प्रेम के माध्यम से पाने की अवधारणा।
सगुण काव्यधारा
इस धारा के प्रमुख कवि सूरदास, तुलसीदास, मीरा, रसखान आदि थे।
- रामभक्ति काव्य – तुलसीदास द्वारा रचित ‘रामचरितमानस’।
- कृष्णभक्ति काव्य – सूरदास के ‘सूरसागर’ और मीरा के पद।
सूफी काव्यधारा
सूफी काव्य प्रेम और भक्ति से प्रेरित था। प्रमुख कवि— मलिक मोहम्मद जायसी, कुतुबन, मंझन आदि।
Unit III: चंदबरदाई और उनका काव्य
पृथ्वीराज रासो
चंदबरदाई द्वारा रचित ‘पृथ्वीराज रासो’ हिन्दी साहित्य का प्रथम महाकाव्य माना जाता है। इसमें पृथ्वीराज चौहान की वीरता, प्रेम और युद्धों का वर्णन किया गया है।
विशेषताएँ:
- वीरगाथा परंपरा की उत्कृष्ट कृति।
- भाषा – ब्रजभाषा मिश्रित अपभ्रंश।
- छंद – दोहा और चौपाई।
चयनित अंश:
‘पूरब दिसि गढ़ गढ़नपति’ से ‘मिलहि राज प्रथिराज जिय तक’ (छंद संख्या 1-10)
Unit IV: कबीर और उनका काव्य
कबीर के काव्य की विशेषताएँ
- निर्गुण भक्ति पर आधारित।
- सहज भाषा शैली – साखी, सबद और रमैनी का प्रयोग।
- सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार।
चयनित अंश:
- साखी – गुरुदेव कौ अंग-3.6.8, विरह कौ अंग-1,5,8
- पद – 16, 40, 43 (कबीर ग्रंथावली)
Unit V: जायसी और उनका काव्य
पद्मावत (जायसी)
- सूफी प्रेमाख्यान काव्य।
- अलंकारिक भाषा शैली।
चयनित अंश:
- ‘मानसरोदक खंड’ (कड़वक संख्या 4:1-4:8)
Unit VI: सूरदास और उनका काव्य
सूरसागर (सूरदास)
- कृष्णभक्ति काव्य परंपरा का उत्कर्ष।
- श्रृंगार और वात्सल्य रस की प्रधानता।
चयनित अंश:
- विनय के पद (1,2,23,24,25,39)
- भ्रमर गीत (6,7,11,13,23,24,28)
Unit VII: तुलसीदास और उनका काव्य
रामचरितमानस
- लोकभाषा में रामकथा का वर्णन।
- धर्म और नीति का समन्वय।
चयनित अंश:
- अयोध्या कांड – दोहा 125-131
- विनय पत्रिका – पद 88, 91, 105, 162
शिक्षण विधियाँ
- कक्षा व्याख्यान
- समूह चर्चा
- असाइनमेंट
- सेमिनार
Suggested Readings
- हिन्दी साहित्य का इतिहास – आचार्य रामचन्द्र शुक्ल
- भक्तिकाव्य की परंपरा – हजारी प्रसाद द्विवेदी
- कबीर ग्रंथावली – डॉ. श्यामसुंदर दास
- सूरसागर सार – डॉ. धीरेन्द्र वर्मा
प्राचीन एवं भक्तिकालीन काव्य: विस्तृत प्रश्न-उत्तर
नीचे दिए गए प्रश्नों और उत्तरों में हिन्दी साहित्य, भक्तिकालीन काव्य, वीरगाथा काल, निर्गुण काव्यधारा, सगुण काव्यधारा, सूफी काव्य, रामभक्ति और कृष्णभक्ति काव्य
प्रश्न 1: हिन्दी साहित्य के आदिकाल (वीरगाथा काल) की विशेषताएँ एवं प्रमुख कवियों का योगदान स्पष्ट करें।
उत्तर:
हिन्दी साहित्य का आदिकाल (वीरगाथा काल) 10वीं से 14वीं शताब्दी के बीच का समय माना जाता है। इस काल में वीर रस से परिपूर्ण काव्य की प्रधानता थी। इसे वीरगाथा काल इसलिए कहा जाता है क्योंकि इस समय रचित साहित्य में वीरता, शौर्य, युद्ध और राजाओं की गाथाएँ प्रमुख रूप से वर्णित हैं।
आदिकाल (वीरगाथा काल) की विशेषताएँ:
- वीर रस की प्रधानता – इस काल के काव्य में राजाओं, वीरों और योद्धाओं की प्रशंसा की गई है।
- युद्धों का वर्णन – युद्धों में वीरों के शौर्य, पराक्रम और बलिदान का उल्लेख मिलता है।
- नैतिकता और आदर्शवाद – इस काल की रचनाएँ समाज में नैतिकता और आदर्श स्थापित करने का कार्य करती थीं।
- भाषा और शैली – ब्रज, अपभ्रंश और अवधी जैसी बोलियों का प्रयोग किया गया।
- छंदों का प्रयोग – दोहा, चौपाई और कवित्त छंदों का प्रयोग अधिक होता था।
महत्वपूर्ण कवि एवं रचनाएँ:
- चंदबरदाई – पृथ्वीराज रासो (पृथ्वीराज चौहान की वीरता का वर्णन)
- जगनिक – आल्हा खंड (आल्हा-ऊदल की वीरता पर आधारित)
- विद्यापति – प्रेम और भक्ति पर आधारित कविताएँ
इस काल का साहित्य वीरता और राष्ट्रीय भावना को प्रेरित करने वाला था।
प्रश्न 2: भक्तिकालीन हिन्दी काव्य की प्रवृत्तियाँ एवं भक्ति आंदोलन का प्रभाव स्पष्ट करें।
उत्तर:
भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का 14वीं से 17वीं शताब्दी के बीच का कालखंड है। यह काल भक्ति आंदोलन से प्रभावित था, जो हिन्दू और इस्लामी परंपराओं के बीच समन्वय स्थापित करने का प्रयास करता था।
भक्तिकालीन हिन्दी काव्य की प्रमुख प्रवृत्तियाँ:
- ईश्वर की भक्ति का प्रचार – इस काल के काव्य में भक्त और भगवान के प्रेमपूर्ण संबंधों को दिखाया गया।
- सामाजिक सुधार – समाज में जातिवाद, कर्मकांड और अंधविश्वास का विरोध किया गया।
- स्थानीय भाषा का प्रयोग – संस्कृत के स्थान पर अवधी, ब्रज और लोकभाषाओं में काव्य रचनाएँ की गईं।
- दो प्रमुख धारा – निर्गुण और सगुण भक्ति काव्य
- निर्गुण काव्यधारा: ज्ञानमार्गी (कबीर) और प्रेममार्गी (रैदास, दादू)
- सगुण काव्यधारा: रामभक्ति (तुलसीदास) और कृष्णभक्ति (सूरदास, मीरा)
- काव्यरूपों का विकास – इस काल में दोहा, साखी, पद, चौपाई, रमैनी जैसी काव्य शैलियों का प्रयोग बढ़ा।
भक्ति आंदोलन का प्रभाव:
- धार्मिक सहिष्णुता को बढ़ावा मिला।
- हिन्दू-मुस्लिम समन्वय स्थापित हुआ।
- समाज में समता और समानता की भावना विकसित हुई।
प्रश्न 3: कबीरदास के काव्य की विशेषताएँ और उनकी प्रमुख रचनाओं की समीक्षा करें।
उत्तर:
कबीरदास (1398-1518 ई.) भक्तिकाल के प्रमुख कवि थे। वे निर्गुण भक्ति धारा के प्रवर्तक माने जाते हैं। कबीर ने हिन्दू-मुस्लिम एकता और सामाजिक बुराइयों का विरोध किया।
कबीर के काव्य की विशेषताएँ:
- निर्गुण भक्ति की प्रधानता – कबीर का ईश्वर निराकार और निर्गुण है।
- धार्मिक आडंबरों का विरोध – वे मूर्तिपूजा, कर्मकांड और पाखंड का विरोध करते थे।
- सहज भाषा और शैली – कबीर की भाषा सधुक्कड़ी थी, जिसमें अवधी, ब्रज और पंजाबी का मिश्रण था।
- काव्यरूप – साखी, सबद, रमैनी
- तात्त्विकता और व्यंग्यात्मकता – उनकी कविताओं में गूढ़ तत्त्वज्ञान और समाज पर कटाक्ष देखने को मिलता है।
कबीर की प्रमुख रचनाएँ:
- कबीर ग्रंथावली (सम्पादक – श्यामसुंदर दास)
- बीजक – साखी, सबद और रमैनी का संकलन
प्रश्न 4: सूरदास के काव्य में कृष्णभक्ति की विशेषताएँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
सूरदास (1478-1583 ई.) हिन्दी के श्रेष्ठ कृष्णभक्त कवि थे। वे सगुण भक्ति काव्यधारा के प्रमुख कवि थे और उनकी रचनाओं में वात्सल्य, श्रृंगार और माधुर्य भाव की प्रधानता थी।
सूरदास के काव्य की विशेषताएँ:
- कृष्ण की बाल-लीलाओं का सुंदर वर्णन – ‘सूरसागर’ में भगवान कृष्ण की बाल-लीलाओं का अत्यंत भावपूर्ण चित्रण किया गया है।
- भाषा की सरलता और माधुर्य – ब्रज भाषा का प्रयोग किया गया है।
- भक्तिभाव और वात्सल्य रस – उनकी रचनाओं में वात्सल्य भाव विशेष रूप से दिखाई देता है।
- छंदों का प्रयोग – सूरदास ने पद, दोहा और कवित्त छंदों का प्रयोग किया।
सूरदास की प्रमुख रचनाएँ:
- सूरसागर – कृष्ण की बाल-लीलाओं का वर्णन।
- सूरसारावली
- विनय पत्रिका
प्रश्न 5: तुलसीदास के काव्य में रामभक्ति की परंपरा को स्पष्ट करें।
उत्तर:
गोस्वामी तुलसीदास (1532-1623 ई.) हिन्दी साहित्य के महान कवि थे। उन्होंने रामभक्ति काव्यधारा को नई ऊँचाइयों तक पहुँचाया।
तुलसीदास के काव्य की विशेषताएँ:
- रामभक्ति की प्रधानता – तुलसीदास के काव्य में मर्यादा पुरुषोत्तम राम की महिमा का गुणगान किया गया है।
- संतुलित भाषा शैली – अवधी और ब्रज भाषा का प्रयोग।
- नीति और भक्ति का समन्वय – उनके काव्य में धार्मिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा भी है।
- लोकप्रिय छंदों का प्रयोग – दोहा, चौपाई, सोरठा, कुंडलिया।
तुलसीदास की प्रमुख रचनाएँ:
- रामचरितमानस – श्रीराम के जीवन की कथा।
- विनय पत्रिका
- कवितावली
प्राचीन एवं भक्तिकालीन काव्य: विस्तृत प्रश्न-उत्तर (भाग 2)
प्रश्न 6: भक्तिकाल में निर्गुण और सगुण काव्य धाराओं की तुलना करें।
उत्तर:
भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का सबसे महत्वपूर्ण युग माना जाता है, जिसमें काव्य दो धाराओं में विभाजित था—
- निर्गुण भक्ति धारा (निराकार ईश्वर की भक्ति)
- सगुण भक्ति धारा (साकार ईश्वर की भक्ति)
निर्गुण और सगुण काव्यधारा की तुलना
विशेषता | निर्गुण भक्ति धारा | सगुण भक्ति धारा |
---|---|---|
ईश्वर का स्वरूप | निराकार, निर्गुण | साकार, सगुण |
प्रमुख कवि | कबीर, दादू दयाल, गुरु नानक, रैदास | तुलसीदास, सूरदास, मीरा, रसखान |
प्रमुख विषय | ज्ञान, भक्ति, सामाजिक चेतना | कृष्णलीला, रामकथा |
भाषा | सधुक्कड़ी, खड़ी बोली | अवधी, ब्रजभाषा |
काव्यरूप | साखी, सबद, रमैनी | पद, दोहा, चौपाई |
निष्कर्ष:
निर्गुण काव्यधारा ने सामाजिक चेतना और आध्यात्मिक ज्ञान को बल दिया, जबकि सगुण काव्यधारा ने श्रृंगार, वात्सल्य और प्रेमभाव को महत्व दिया। दोनों ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध किया।
प्रश्न 7: मलिक मोहम्मद जायसी के सूफी प्रेमाख्यान काव्य की विशेषताएँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
मलिक मोहम्मद जायसी (1477-1542 ई.) हिन्दी साहित्य के सूफी काव्यधारा के प्रमुख कवि थे। उन्होंने प्रेम को ईश्वर तक पहुँचने का साधन माना। उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना “पद्मावत” है।
जायसी के काव्य की प्रमुख विशेषताएँ:
- सूफी मत का प्रभाव – प्रेम, भक्ति और आत्मा-परमात्मा के मिलन का संदेश।
- कहानी रूप में काव्य रचना – ‘पद्मावत’ में प्रेमाख्यान शैली का प्रयोग।
- प्रकृति का सुंदर चित्रण – फूल, नदी, पर्वत, चंद्रमा आदि के माध्यम से भावनाओं की अभिव्यक्ति।
- अध्यात्म और रहस्यवाद – प्रेम को ईश्वर प्राप्ति का साधन बताया।
- भाषा और शैली – अवधी भाषा, सहज और प्रवाहपूर्ण शैली।
“पद्मावत” का संक्षिप्त परिचय:
- यह काव्य राजा रतनसेन और रानी पद्मावती के प्रेम पर आधारित है।
- इसमें अलाउद्दीन खिलजी की लंका विजय और पद्मावती के जौहर का उल्लेख है।
निष्कर्ष:
मलिक मोहम्मद जायसी ने अपने सूफी काव्य के माध्यम से प्रेम, भक्ति और अध्यात्म का उत्कृष्ट चित्रण किया।
प्रश्न 8: सूरदास की कृष्णभक्ति काव्यधारा में वात्सल्य और श्रृंगार रस की प्रमुख विशेषताएँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
सूरदास (1478-1583 ई.) हिन्दी साहित्य के सगुण कृष्णभक्ति काव्यधारा के प्रमुख कवि थे। उनका काव्य मुख्य रूप से वात्सल्य और श्रृंगार रस पर आधारित है।
सूरदास के काव्य में वात्सल्य रस:
- बाल कृष्ण की मोहक लीलाएँ – यशोदा के साथ संवाद, बाल लीलाएँ।
- माँ-बेटे के संबंधों का सजीव चित्रण – वात्सल्य रस में मातृ प्रेम की अद्वितीय अभिव्यक्ति।
- भाषा और शब्दों की कोमलता – ‘माँ, दूध, खेलना’ जैसे शब्दों का प्रयोग।
उदाहरण:
“मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो।”
इसमें यशोदा-कृष्ण के बीच का वात्सल्य भाव व्यक्त हुआ है।
सूरदास के काव्य में श्रृंगार रस:
- कृष्ण और गोपियों का प्रेम – राधा-कृष्ण के संयोग और वियोग का उत्कृष्ट चित्रण।
- विरह की पीड़ा – गोपियों के माध्यम से प्रेम की गूढ़ता दिखाई गई।
- भ्रमर गीत प्रसंग – गोपियों की भावनाएँ मुखरित होती हैं।
निष्कर्ष:
सूरदास का काव्य वात्सल्य और श्रृंगार रस का अद्भुत समन्वय है। उनका काव्य भक्तों के हृदय को भक्ति और प्रेम से भर देता है।
प्रश्न 9: तुलसीदास के काव्य में नीति, भक्ति और समाज सुधार की अवधारणा स्पष्ट करें।
उत्तर:
गोस्वामी तुलसीदास (1532-1623 ई.) हिन्दी साहित्य के सर्वश्रेष्ठ भक्त कवि माने जाते हैं। उन्होंने रामचरितमानस के माध्यम से भक्ति, नीति और समाज सुधार को स्थापित किया।
1. तुलसीदास के काव्य में नीति:
- ‘रामचरितमानस’ में आदर्श राजा, पुत्र, भाई और पति का स्वरूप प्रस्तुत किया।
- नीति और मर्यादा का संदेश दिया।
- राजा को धर्म पर आधारित शासन करने की प्रेरणा दी।
उदाहरण:
“परहित सरिस धरम नहि भाई।” (दूसरों की भलाई से बड़ा कोई धर्म नहीं।)
2. तुलसीदास के काव्य में भक्ति:
- राम को मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में प्रस्तुत किया।
- हनुमान और भरत जैसे भक्तों का चरित्र चित्रण।
- नाम संकीर्तन की महिमा का उल्लेख।
3. तुलसीदास के काव्य में समाज सुधार:
- जाति-पाति का विरोध।
- महिलाओं और शूद्रों के प्रति दयालु दृष्टिकोण।
- धार्मिक सहिष्णुता का प्रचार।
निष्कर्ष:
तुलसीदास ने अपने काव्य में भक्ति, नीति और समाज सुधार का समन्वय कर भारतीय समाज को प्रेरित किया।
प्रश्न 10: चंदबरदाई के ‘पृथ्वीराज रासो’ में वीररस की विशेषताएँ स्पष्ट करें।
उत्तर:
चंदबरदाई (12वीं शताब्दी) वीरगाथा काल के प्रमुख कवि थे। उनकी प्रसिद्ध रचना ‘पृथ्वीराज रासो’ वीररस की उत्कृष्ट कृति है।
‘पृथ्वीराज रासो’ में वीर रस की विशेषताएँ:
- राजाओं की शौर्यगाथाएँ – पृथ्वीराज चौहान की वीरता और पराक्रम का चित्रण।
- युद्धों का सजीव वर्णन – कवि ने युद्ध की रणनीतियों को विस्तार से प्रस्तुत किया।
- वीरता और स्वाभिमान – युद्ध में मरने को गौरवपूर्ण बताया गया।
- शब्द शक्ति और छंद योजना – दोहा और चौपाई छंद का प्रभावी प्रयोग।
निष्कर्ष:
‘पृथ्वीराज रासो’ वीररस से ओतप्रोत हिन्दी साहित्य की प्रथम महाकाव्य रचना है, जो भारत के वीर योद्धाओं की गौरवगाथा प्रस्तुत करती है।